विचार विमर्श:- देश की अदालत पर भरोसा था इसीलिए 60 सालों तक बाबरी मस्जिद के मुक़दमे के मुख्य पैरोकार हाशिम अंसारी ज़िंदगी भर मुक़दमे की पैरवी करते रहे। उनका सम्पूर्ण जीवन, संघर्ष का अद्वितीय उदाहरण है।
उनका घर दंगे में जलाया गया, कई बार जेल जाना पड़ा और इमर्जेन्सी में 8 महीना बरेली की जेल में भी रहे मगर कभी भी न तो क़ौम को रुसवा होने दिया और न ही हिन्दू भाइयों से बैर रखा। बल्कि अयोध्या में सौहार्द के लिए सभी उनका सम्मान करते थे।
परमहंस जी के साथ एक ही गाड़ी में बैठ कर मुक़दमे की सुनवाई के लिए जाते। अक्सर कहा करते थे कि अगर मुक़दमा जीत भी गए तो बिना हिन्दू भाइयों के समर्थन और सहयोग के मस्जिद नहीं बनाएँगें।
क्या ये बीच का रास्ता नहीं है? क्या हम कहीं और ऐसा संयम, सौहार्द और विश्वास देखते हैं। हाशिम अंसारी बहुत ज़्यादा पढ़े लिखे नहीं थे मगर कभी कोई एसा बयान नहीं दिया जिस से उम्मत मुंतशिर हो जाए।
तकरीरों और किताबों के रचयिता एक बयान से किसी व्यक्ति के 60 साल के संघर्ष पर पानी फेर देते हैं। और उनके भक्त ये कहते हैं कि उनकी इल्मी सलाहियत बहुत ज़्यादा है इसलिए उनपर सवाल नहीं किया जा सकता। सवाल ये है कि सवाल क्यों नहीं किया का सकता? आप किसी की ज़िंदगी भर की मेहनत पर चंद बयानों से पानी फेर देना चाहते हैं?आख़िर कौन सा लक्ष्य है जिसे प्राप्त करने की इतनी जल्दी है आप को?
आप की इल्मी ख़िदमात का सम्मान है लेकिन आप के ग़ैर संजीदा बयान का विरोध भी है। आप की तकरीरों से और इल्मी सलाहियत से मिल्लत कितनी मत्ताहिद हुई है ये आप बेहतर जानते होंगें लेकिन आप के बयान से मिल्लत मुंतशिर ज़रूर हुई है, मायूस ज़रूर हुई है।
आप के फ़ॉलोअर कह रहे हैं कि मौलाना से उनकी ज़ाती ज़िंदगी के बारे में सवाल क्यों किया जा रहा है? हैरत है मुझे की आप की ही तकरीरों में हज़रत उमर रज़िo की मिसाल दी जाती थी कि जब कुर्ता आम लोगों से लम्बा देखा गया तो लोगों ने सवाल किया और हज़रत उमर रज़िo ने बिना किसी विरोध के उसका जवाब दिया। किसी ने भी ये नहीं कहा कि तुम हज़रत उमर रज़िo से सवाल क्यों कर रहे हो? जब ख़लीफ़ा से सवाल हो सकता है तो आप से आप की सम्पत्ति और धन पर सवाल क्यों नहीं हो सकता है साहब? सवाल तो होगा और ज़रूर होगा?
आप किसी से ऊपर नहीं हैं? सवाल मोदी जी और योगी जी से हो सकता है तो सलमान नदवी से क्यों नहीं?
मुझे याद है कि हाशिम अंसारी से मिलने मैं 2010 में उनके घर गया था। मुक़दमे की सारी बातें उन्हें शबदसः याद थीं। बात चीत में उन्होंने दुःख का इज़हार करते हुवे कहा था कि अपनी ही सफ़ों में कुछ एसे लोग हैं जो ज़ाती मफ़ाद के लिए मामले को पेचीदा बना रहे हैं। उस वक़्त मुझे उनका इशारा समझ नहीं आया था पर अब ख़ूब समझ आरहा।
जो लोग कभी कोई ज़मीनी संघर्ष नहीं किए, हाँ, ख़ुद की ज़मीनें ज़रूर ख़रीदते रहे, तकरीरों में ज़िंदगी गुज़री, वो आज अपने बयान से काल्पनिक सौहार्द के नाम पर ‘यश’ पाना चाहते हैं और हाशिम अंसारी के ज़िंदगी भर की मेहनत को बर्बाद करना चाहते हैं।
हम ऐसा हरगिज़ नहीं होने देंगें। हाशिम अंसारी की मेहनत और उनके जीवन संघर्ष को व्यर्थ नहीं जाने देंगें। हम तो प्रश्न करेंगे और ज़रूर करेंगें।
“मैं ये मानता हूँ मेरे दिए तेरे आँधियों ने बुझा दिए,
मगर एक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है”