गोरखपुर और फुलपुर जीत के मायने। कल दोपहर बाद से जब ये बात साफ हो गई कि उत्तरप्रदेश उप चुनाव में समाजवादी पार्टी दोनों सीट जीत गयी है और राजद ने अररिया सीट जीत लिया है तो खुश होने वाले और दुखी होने वाले लोग तो थे ही लेकिन कुछ वो लोग भी थे जो किसी भी स्थिति से संतुष्ट नही होते अब कभी EVM का नाम नही लेना ,अब इस से 2019 में हार जाओगे EVM अब सही हो गई एक दूसरी प्रजाति भी आई कि जुम्मन क्यो खुश हो रहे है मुज़्ज़फरनगर भूल गए क्या मायावती के दौर में मुसलमानों की गिरफ्तारी भूल गए सवाल उन सब के जायज़ है और उन सवालों को नजरअंदाज किया भी नही जा सकता लेकिन जिस अंदाज से रोना पीटना मचाया जा रहा है वो भी समझ से बाहर है
EVM जब से आई है उसमें कुछ न कुछ खेल होता है इस बात से कोई इनकार नही कर सकता है और 2014 में बड़े पैमाने में ये खेल खेला गया उसके बाद से स्ट्रेटेजी बदली और इसका फायदा तो उठाया गया लेकिन अंदाज़ तो बदला गया वो था कि क्रूशियल सीट में जहा 2 हज़ार से 5 -7 हज़ार का डिफरेन्स होने की उम्मीद हो वहाँ ये खेल खेला जाए लेकिन जब अवाम पूरी तरह तय कर लेती है तो फिर EVM का कोई फैक्टर नही बचता है दिल्ली की 70 में से 67 सीट आपके सामने है लेकिन जब उत्तरप्रदेश में त्रिकोड़ीय मुकाबला हुआ हज़ार दो हज़ार के मार्जिन वाली सीट पे EVM भाजपा का सबसे भरोसेमंद साथी रहा ,गुजरात के चुनाव में एक नई स्ट्रेटेजी सामने आई कि EVM के ज़रिए नोटा में बढ़ोतरी करी गयी 18 सीट पे विनिंग मार्जिन कम था नोटा ज़्यादा इन सीट पर मोढवाडिया और गोहिल की सीट बजी शामिल थे जो प्रदेश में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता थे ,जिग्नेश मेवानी की सीट पे तीसरे नम्बर पे नोटा था ,यानी अगर मार्जिन कम होता तो ये भी निपट जाते गुजरात के गाँव का आदमी दूर से चल कर आएगा और लाइन में लगेगा और नोटा दबाएगा ये बात सोच से परे है ,गुजरात के लोग दिल्ली और गोआ के बराबर नोटा पसन्द करते है इसपे सिर्फ मुस्कुराया ही जा सकता है इसीलिए गोरखपुर और फूलपुर की जीत महत्वपूर्ण है कि जनता ने सिर्फ भाजपा को ही नही हराया उसने EVM और उसके खेल को भी हराया है जब अवाम भाजपा + EVM को हरा दे तो खुशिया मानना ज़रूरी है
अब रही बात समाजवादी पार्टी की तो मैंने मुज़फ्फरनगर के लिसाढ़ कुटबा कुटबी भी देखा है और मलकपुर के कैम्प में बुलडोज़र का चलना भी देखा है बसपा के दौर में पकड़े लोगो के लिए अदालतों के चक्कर भी लगाए है खालिद मुजाहिद के चचा उस्तादों में है तारिक़ क़ासमी का परिवार भी जानने वालों में है इसलिए इन दोनों पार्टियों के दिये हुए दर्द को महसूस भी किया है और उसका अंदाज़ा भी है लेकिन इन सबके बावजूद फिलहाल जो आपके सामने है और जो हारे है वो तो आपको मारने और आपकी इज़्ज़त आबरु को अपने जूते के नीचे पामाल करना अपना हक़ समझते है और आप पीटे जाने लायक है और जो आपको पीटेंगे उसको इनाम मिलेगा ये संदेश भी पूरे देश मे देते है ,कर्नाटक में चुनाव होने वाले है और मंगलोर उडुपी भटकल ये दक्षिण भारत के वो इलाके है जहाँ मुसलमान सम्रद्ध है हर 15 दिन में योगी की रैली वहा हो रही थी कि और यही ज्ञान बाटा जा रहा था कि हमने मुसलमानो को पीटा औरतो के बारे में जो बोला उसको दोहराने की ज़रूरत नही हैऔर तो और उनके इलाक़ो तक के नाम बदल दिए और लोगो ने हमे सर आखों पे बिठाया और जिताया लेकिन गोरखपुर की ये हार उनको औक़ात में ला देगी ,डॉ कफील का क्या जुर्म था कि सारी रात ऑक्सिजन सिलेंडर के लिए भागता रहा ,उसको योगी जी कहते है हीरो बन रहे थे 7 से 8 सिलेंडर से क्या कर लिया यानी कुछ लोगो को बचाया जाना गलत था बकरीद के दिन गिरफ्तार हुए कफील आज भी जेल में है ,उनके दोस्त औऱ साथी इंतेज़ार कर रहे थी कि गोरखपुर उपचुनाव मे अगर भाजपा हार जाए तो लोगो मे हौसला आये और वो इस नाइंसाफी के खिलाफ खड़े हो वो लोग आज खुश है लेकिन आप लोगो को तकलीफ है
मैं संजीव बालियान, संगीत सोम और सुरेश राणा के मुकाबले में किसी भी सपा बसपा के नेता को चुन लूंगा ,क्योकि मारने वाले मुकाबले में न बचाने वाला तो फिर भी बेहतर है और मारने वाला भी वो जो मारने के बाद उसपे फ़क़्र करे और दूसरों को भी मुझे मारने पर प्रोत्साहित करें जो लोग विधानसभा और लोकसभा में सियासी नुमाइंदगी का रोना रो रहे है वो बताए कि हमने अपने वोट का देवबन्द ,संभल अलीगढ़ काठ रामपुर वगैरह में क्या किया आधे फला साहब को और आधे फला साहब को दे दिया एकला चलो की नीति कभी न सही हुई है न हो सकती है और पड़ोसियों के डर मकान बदलने वाले 1947 में ही चले गए थे ,इस तरह रोने और गालिया देने या सोशल मीडिया में हंगामा मचाने से अगर अपनी सियासी कुव्वत बनती तो अब बन चुकी होती आओ मुझे बताए कि आपने कभी निषाद पार्टी के लोगों की पोस्ट सोशल मीडिया में देखी ,नही वो ज़मीन में अपने लोगो को मुत्तहिद कर रहे थे और अपने लाये अमल में लगे थे अन्नू पासवान और अमर पासवान का नाम भी आपमे नही सुना होगा कि कैसे उन लोगों 3 सालो से लगातार ज़मीन में मेहनत कर के गोरखपुर में ही योगी को चैलेन्ज का रखा है और इस चुनाव में बड़ी भूमिका निभाई है अब जो लोग अतीक के भाई होने की बात कर रहे है वो सिर्फ अतीक से या उनके किसी आदमी से पूछ लें कि चांद बाबा छम्मन और जग्गा भी तो भाई थे
अपना लाये अमल तैयार करिये की शार्ट टर्म प्लान हमारा ये होगा कि हम लोगो को मुत्तहिद करेंगे अपने बुनियादी सवाल मुद्दे रखेंगे और उसके हिसाब से वोट करेंगे ,लिंग टर्म प्लान में हमारा अपना सियासी वजूफ होगा जिसमें क़यादत भी हमारी होगी और तमाम पिछड़े मज़लूम और दबे कुचले लोग हमारे साथ होंगे लेकिन इसले लिए जमीन पे आना होगा राय अम्मा बनानी होगी लोगो के सुख दुख में खड़ा हिना पड़ेगा और उनके दर्द को महसूस करना होगा और इसके लिए एक लंबा वक्त चाहिए जिसके लिए ज़ेहनी तौर पे भी तैयार हिना होगा हिट और रन से कुछ होने वाला नही है फिलहाल खुश रहिये की इसी सिस्टम ने पड़ोस के रही से आपके ही आदमी को संसद बहज दिया है और अगर वो आपकी नुमाईंदगी न करे तो आप उसका गिरेबान पकड़ियेगा मैं तो इसी बात से खुश हो कि गोरखपुर की अवाम ने ये संदेश दे दिया है कि योगी जी हम सब ईद मनाएंगे