नई दिल्ली : (तारिक हुसैन रिज़वी )हम जब नए घर की तलाश करते हैं, तो हमारे ध्यान में कुछ सुविधाओं की रूप-रेखा दस्तक देती हैं, जैसे बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल होना चाहिए, घर तक पहुँचाने के लिए सुगम यातायात के साधन उपलब्ध हों, और इन सब से अधिक आवश्यक बिंदु जो होता है, वह होता है, आस-पास अस्पताल या अच्छे डाॅक्टर का होना।
ओखला जामिया नगर का क्षेत्र इस मामले में बहुत भाग्यशाली है, क्योंकि यहाँ पर होली फैमिली, फोर्टीज़ और अपोलो जैसे नामचीन अस्पताल मौजूद हैं। लेकिन अगर क्षेत्र के नागरिकों की आय (प्दबवउम) और इलाज पर ख़र्च करने की क्षमता का आंकलन किया जाए, तो केवल बीस प्रतिशत नागरिक ही इन नामचीन अस्पतालों की सेवाएँ प्राप्त करने के योग्य हैं।
जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी में डी ग्रुप का कर्मचारी भी इलाज के लिए अल्शिफ़ा अस्पताल जा सकता है क्योंकि अल्शिफ़ा जामिया के पैनल में भी आता है, और बसी हुई काॅलानियों के नज़दीक भी है। जो लोग यूनानी इलाज करवाना चाहते हैं उनके लिए अबुल फज़ल एन्कलेव (डी-ब्लाक) में एक सरकारी यूनानी अस्पताल है। यूनानी और होम्योपैथिक इलाज करवाले के लिए धैर्य और संयम की आवश्यकता होती है, आज की दौड़ भाग की जिन्दगी में इतना समय किसी के पास है नहीं कि धैर्य रखा जाए। हर कोई तुरंत इलाज और तुरंत स्वास्थ्य लाभ की आशा करता है।
इसलिए अतिरिक्त सारी आबादी क्षेत्र के उन डाॅक्टर्स और क्लीनिक पर निर्भर हैं जिनके नाम के आगे डाॅक्टर शब्द लिखा है, बिना छान-बीन किये उनसे इलाज करवाने को मजबूर हैं कि तथाकथित डाॅक्टर वास्तव में डाॅक्टर हैं, या केवल डाॅक्टर का रूप धारण किये हुए हैं। 30 रूपए से 50 रूपए के ख़र्च पर मरीज़ का बुखार उतर रहा है, जुकाम ठीक हो रहा है। दांत का दर्द कम हो रहा है, मरीज निष्चिंता है लेकिन उसकी यह निक्षिंताता उसके शरीर के किस भाग को अपंग या निश्क्रिय बना रही है, यह पता बाद में उस वक़्त चलता है जब चिड़िया खेत चुग चुकी होती है।
भारत सरकार के आयूश विभाग ने होम्यो, यूनानी और आर्युवेदिक प्रेक्टिशनर को सशर्त एलोपैथी की दवाएँ लिखने की इस कारण आज्ञा दी थी कि तीनों ही शाखाओं के विधार्थी हयूमन एनाटोमी और फिजियोलाॅजी के बारे में गहन अध्ययन करके ज्ञान अर्जित करते हैं। इसकी आड़ में वह नाकारा लोग जिन्होंने कही से फस्र्ट -एड की ट्रेनिंग ली थी वह भी डाक्टर की कुर्सी पर निर्भीक होकर विराजमान हैं। उनकी निर्भक्ता का मुख्य कारण है प्रसासन की उदासीनता और जनता की अर्थिक मजबूरी। मरीज़ का दर्द दूर करने वाला तथाकथिक डाॅक्टर बेदर्द बनकर जनता की गाढ़ी कमाई लूट रहे हैं। और क्लीनिक के मालिकों ने बड़े बड़े होर्डिग्स पर नामी गिरामी एमबीबीएस डाॅक्टर्स के नाम लिखे हुए हैं, जब उन डाॅक्टर के बारे में जानकारी के लिए मरीज रिसेप्शन पर पूछते हैं तो पता चलता है कि वह डाॅक्टर सप्ताह में एक ही दिन आधे घण्टे के लिए आते हैं।
आदमी बीमार आज है डाॅक्टर एक हफते बाद मिलेगें, यह सुनकर ही मरीज़ का दर्द और बढ़ जाता है। डाॅक्टर के पवित्र पेशे के कारण समाज उसको इश्वर तुल्य आदर देता है। क्योंकि डाॅक्टर अपने मरीज़ के जीवन सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध रहता है। लेकिन ओखला के अधिकतर अयोग्य बिना डिग्री वाले तथाकथित झोलाछाप डाॅक्टर्स नक़ली फरेबी हकीम, शुगर, ब्लड प्रेशर, गुप्त रोग, सफ़ेद दाग़ के नाम पर दोनों हाथों से मरीज़ों को लूटने का काम कर रहे हैं, उनके साथ विश्वासघाट कर रहे हैं, और उनके जीवन की रक्षा करने के बजाए सुरक्षा के साथ खेल रहे हैं।
इस मामले में सन 2010 में जब क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट आया तो इस बात की काफ़ी आशा जागी थी कि अब झोलाछाप डाॅक्टर्स पर लगाम लगेगी। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना किसी स्वीकृति या अनुमोदित योग्यता के किसी व्यक्ति को इस आधार पर देशी तरीक़े से मरीज़ों का इलाज करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती कि वह उनका पुश्तैनी काम है। किसी भी पेशे या व्यवसाय को अपनाने के मौलिक अधिकार का यह कतई मतलब नहीं है कि बिना स्वीकृत योग्यता के लोगों को देशी इलाज करने की अनुमति दी जाए। लेकिन आदेश संदेश भर बन के रह गए।